क्या राजनितिक स्वार्थ चरितार्थ करने के लिए ‘नया तृणमूल ‘ का डंका?

बंगाल में एक नया राजनीती का आग़ाज़ होने जा रहा है। तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी के भतीजे और पार्टी के नैशनल जनरल सेक्रेटरी अभिषेक बनर्जी का “नया तृणमूल” बनाने का नारा शहर भर के पोस्टरों और फ्लेक्सों में देखा जा रहा है। कुछ लोग इस सोच से प्रभावित होकर बनर्जी परिवार के कसीदे पढ़ ने लग गायें हैं। इनमें से कुछ को समझ नहीं आ रहा की आखिर झुके तो किस तरफ? एक तरफ तो ममता बनर्जी हैं और दूसरी तरफ भतीजा अभिषेक. वैसे सवाल उठ सकता है की आखिर तरफदारी वाली बात क्यों या कहाँ से उठ रही है, तो आपको बता दें की नया तृणमूल के पोस्टरों और फ्लेक्सों में अभिषेक बनर्जी का फोटो दिख रहा है, हाल फिलहाल तृणमूल नेताओं से बातें करें और पार्टी की प्रभुता पर सवाल पूछें तो आपको अजीब सा जवाब सुनने को मिलेगा – ममता हमारी लीडर हैं और पार्टी के कप्तान अभिषेक बनर्जी हैं। साफ़ है की पार्टी के लोग इस सवाल से कन्नी काटते नज़र आते हैं। ममता बनर्जी के खिलाफ बोलना नागवार गुज़र सकती है तो वहीँ अभिषेक को नाराज़ करना महँगा पड़ सकता है।


अभिषेक बनर्जी ने यह भी कहा की “नया तृणमूल” करप्शन को बढ़ावा नहीं देगी और ऐसे सभी नेता मंत्री जिनका नाम करप्शन से जुड़ा हुआ मिले उनको पार्टी बहिष्कार करेगी। सुनने में बोहोत अच्छा लगता है पर क्या तृणमूल अपनी तोला वाली छवि सुधार सकेगी? क्या अभिषेक बनर्जी अपने पार्टी के कर्मिओं को हिदायत दे सकते हैं कि कोई भी तोला लेते पाया गया तो उसको उसी वक्त पार्टी निष्काषित करेगी। तो फिर चुनाव कैसे लड़ेंगे? चुनाव से पहले ‘लॉलीपाँप’ का पैसा कहाँ से आएगा?

अब तीन अहम् सवाल जो मेरे ज़हन में उठ रही है और मुझे लगता है सभी के ज़हन में उठ रही है:

(१) “नया तृणमूल” का नारा क्यों? क्या ‘परिवर्तित’ या ‘बदलाव के साथ’ ऐसा कह कर परोसा नहीं जा सकता था?
(२) अगर सुप्रीमो ममता बनर्जी ही रहेंगी तो पोस्टरों और फ्लेक्सों पर अभिषेक बनर्जी का बड़ा बड़ा फोटो क्यों?
(३) अगर “नया तृणमूल” सुप्रीमो के संज्ञान में था तो उन्होंने इस पर चुप्पी क्यों सधी हुई है?
(४) क्या ममता बनर्जी अब पार्टी में अब सेकेण्ड क्लास सिटीजन बन गयी हैं?
(५) “नया तृणमूल” का ऐलान अभिषेक ने जिला के एक रैली से की। इतनी बड़ी खबर कोलकाता में आधिकारिक तौर पर प्रेस वार्ता करके क्यों नहीं?
(६) क्या “नया तृणमूल” ममता बनर्जी को कोने में धकेल ने का एक बहाना नहीं है?

सवाल तीखे ज़रूर लग रहे हैं, पर यह मुद्दा इतना आसान नहीं है जितना हल्का दिखाया जा रहा है। इसके दो अहम् वजह हैं:

(१) ममता को बंगाल के लोगों ने मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठाया था तो ममता के प्रति उनका विशवास और आस्था की वजह से, ममता ने कुछ काम तो ज़रूर किया है पर महज़ ममता के कहने पर जनता अभिषेक को क्यों उस कुर्सी पर बिठाये?
(२) अगर ममता प्रधान मंत्री बन भी जाती है और बंगाल में नया मुख्यमंत्री बनना हो तो कायदे से चुनाव होंगे, इस तरह से भतीजावाद नहीं चल सकता।

बंगाल में तृणमूल ने जो भी किया न किया, उसका ज़िम्मेदार ममता बनर्जी हैं… न की अभिषेक बनर्जी। आखिर में एक सवाल, आखिर अभिषेक बनर्जी ने कौनसा खम्बा उखरा है की बंगाल के लोग उनको मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करें?

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